क्या आपने भारत के किसी ऐसी जगह के बारे में सुना है, जहां के लोग बिना वीजा-पासपोर्ट के दूसरे देश में चले जाते हों? जहां का राजा खाता किसी और देश में है, लेकिन सोता भारत में है? शायद नहीं सुना तो बता दें कि नागालैंड के लोंगवा गांव में ऐसा ही होता है, जहां पर कोन्याक जनजाति के लोग रहते हैं।
दरअसल, इस गांव का आधा हिस्सा भारत में तो आधा हिस्सा म्यांमार में है। यहां के राजा के घर के बीच से गुजरता है बॉर्डर...
बता दें कि इस ट्राइब्स के राजा का नाम अंग नगोवांग है, जिनके अधीन लोंगवा समेत कुल 75 गांव आते हैं। वहीं, इनके घर के बीच से होकर म्यांमार और भारत का बॉर्डर गुजरता है। ऐसे में इनका परिवार खाना तो म्यांमार के हिस्से में खाता है, लेकिन सोने के लिए भारतीय सीमा का उपयोग करता है। बता दें कि लोंगवा गांव के राजा की फैमिली भी काफी बड़ी है, जिसमें उनकी 60 बीवियां भी शामिल हैं। वहीं, राजा का बेटा म्यांमार आर्मी में है।
तकनीकी तौर पर हासिल है दोहरी नागरिकता
भारत-म्यांमार सीमा पर होने के कारण यहां के लोगों को तकनीकी तौर दोनों ही देशों की नागरिकता मिली हुई है। ऐसे में इन्हें म्यांमार जाने के लिए न तो वीजा की जरूरत होती है और न ही भारतीय पासपोर्ट की। यहां के लोग दोनों ही देशों में स्वतंत्र रुप से घूम सकते हैं।
कहलाते हैं हेड हंटर्स, बोलते हैं नागमिस भाषा
इस ट्राइब्स के लोगों को हेड हंटर्स के नाम से भी जाना जाता है। पहले ये लोग इंसानों को मारकर उसके सिर को अपने साथ ले जाते थे। हालांकि, 1960 के दशक बाद यहां हेड हंटिंग नहीं होती है, लेकिन लोगों के घरों में सजाए गए खोपड़ियों को देखा जा सकता है। बता दें कि इनकी संख्या अन्य दूसरे जनजातियों की तुलना में काफी ज्यादा है। वहीं, इनकी भाषा नागमिस है, जो नागा और आसामी भाषा से मिलकर बनी है।
बता दें कि इस ट्राइब्स के राजा का नाम अंग नगोवांग है, जिनके अधीन लोंगवा समेत कुल 75 गांव आते हैं। वहीं, इनके घर के बीच से होकर म्यांमार और भारत का बॉर्डर गुजरता है। ऐसे में इनका परिवार खाना तो म्यांमार के हिस्से में खाता है, लेकिन सोने के लिए भारतीय सीमा का उपयोग करता है। बता दें कि लोंगवा गांव के राजा की फैमिली भी काफी बड़ी है, जिसमें उनकी 60 बीवियां भी शामिल हैं। वहीं, राजा का बेटा म्यांमार आर्मी में है।
तकनीकी तौर पर हासिल है दोहरी नागरिकता
भारत-म्यांमार सीमा पर होने के कारण यहां के लोगों को तकनीकी तौर दोनों ही देशों की नागरिकता मिली हुई है। ऐसे में इन्हें म्यांमार जाने के लिए न तो वीजा की जरूरत होती है और न ही भारतीय पासपोर्ट की। यहां के लोग दोनों ही देशों में स्वतंत्र रुप से घूम सकते हैं।
कहलाते हैं हेड हंटर्स, बोलते हैं नागमिस भाषा
इस ट्राइब्स के लोगों को हेड हंटर्स के नाम से भी जाना जाता है। पहले ये लोग इंसानों को मारकर उसके सिर को अपने साथ ले जाते थे। हालांकि, 1960 के दशक बाद यहां हेड हंटिंग नहीं होती है, लेकिन लोगों के घरों में सजाए गए खोपड़ियों को देखा जा सकता है। बता दें कि इनकी संख्या अन्य दूसरे जनजातियों की तुलना में काफी ज्यादा है। वहीं, इनकी भाषा नागमिस है, जो नागा और आसामी भाषा से मिलकर बनी है।
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